क्यों सुर्खियों में है ईरान-इजरायल युद्ध?
2025 का यह जून महीना मध्य पूर्व के लिए इतिहास बनकर उभरा है। अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर एयर स्ट्राइक और इसके जवाब में ईरान द्वारा इजराइल में बमबारी के चलते पूरी दुनिया में ईरान और इजरायल का युद्ध सुर्खियों में चल रहे है। यरूशलम से तेहरान तक और व्हाइट हाउस से संयुक्त राष्ट्र तक हर जगह इसी युद्ध की गूंज है। आईए जानते हैं युद्ध शुरू होने के पीछे का कारण, घटनाक्रम, रणनीति और क्या यह युद्ध रुकेगा?
क्या है युद्ध पीछे का बड़ा कारण?
इस युद्ध की असली वजह केवल हाल ही के हमले नहीं, बल्कि वर्षों से चले आ रहे गहरे राजनीतिक, धार्मिक और रणनीतिक टकराव हैं। ईरान और इजरायल के बीच दुश्मनी कोई नई बात नहीं है। 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ही ईरान, इजरायल के अस्तित्व को अस्वीकार करता रहा है। वहीं इजरायल हमेशा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानता रहा है। यही कारण है कि अमेरिका और इजरायल लंबे समय से ईरान की परमाणु गतिविधियों पर निगरानी रखे हुए थे। जून 2025 में जब खुफिया रिपोर्ट्स में यह सामने आया कि ईरान 90% तक यूरेनियम संवर्धन कर चुका है, जो परमाणु हथियार बनाने की सीमा होती है, तो अमेरिका ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए ईरान के Fordow, Natanz और Isfahan जैसे परमाणु ठिकानों पर एयरस्ट्राइक कर दी। यह वही बिंदु था, जहाँ से संघर्ष खुलकर युद्ध में बदल गया।

क्या थी युद्ध के पीछे की रणनीति?
अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने के लिए एक सटीक और गुप्त एयरस्ट्राइक रणनीति बनाई, जिसे ‘Operation Midnight Hammer’ कहा गया। ईरान ने बदले में इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन से हमला कर जवाबी रणनीति अपनाई। इजरायल ने ‘Iron Dome’ से इन हमलों को रोका और ईरानी सैन्य ठिकानों पर पलटवार किया। ईरान ने हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे गुटों को भी मोर्चे पर उतारा। तीनों देशों ने साइबर हमलों और मीडिया युद्ध का भी सहारा लिया। इस तरह यह लड़ाई मैदान में ही नहीं, तकनीक और कूटनीति के स्तर पर भी लड़ी जा रही है।
क्या यह युद्ध रुकेगा?
इस समय युद्ध रुकने के आसार बेहद कमजोर नजर आ रहे हैं और इसके पीछे का बड़ा कारण है। ईरान और इजरायल दोनों ही पीछे हटने के लिए तनिक भी तैयार नहीं हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र, चीन, रूस और कई खाड़ी देश युद्ध विराम की कोशिशें कर रहे हैं। अगर कूटनीति मजबूत हुई और दबाव बना, तो संघर्ष को रोका जा सकता है। लेकिन अगर एक और बड़ा हमला हुआ, तो यह लड़ाई और भी खतरनाक रूप ले सकती है। इसलिए शांति की उम्मीद तो है, पर गारंटी नहीं।
अब आगे क्या हो सकता है?
अगर हालात नहीं सुधरे तो यह टकराव एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध में बदल सकता है, जिसमें लेबनान, सीरिया और गाजा जैसे मोर्चे भी खुल सकते हैं। ईरान अमेरिकी ठिकानों को निशाना बना सकता है और Strait of Hormuz को बंद करने की कोशिश कर सकता है, जिससे वैश्विक तेल संकट बढ़ेगा। इजरायल भी बड़े पैमाने पर ज़मीनी ऑपरेशन की तैयारी कर सकता है। हमास और हिज़्बुल्लाह जैसे गुटों के सक्रिय होने से यह युद्ध कई मोर्चों पर फैल सकता है। वहीं रूस, चीन या तुर्की जैसे देश खुलकर किसी एक पक्ष के साथ आ सकते हैं। अगर जल्द ही कूटनीतिक हल नहीं निकला, तो यह संघर्ष तीसरे विश्व युद्ध जैसी शक्ल भी ले सकता है।
युद्ध के संबध में वैश्विक प्रतिक्रियाए

Israel–Iran युद्ध पर दुनियाभर की नजरें टिकी हैं। अमेरिका ने ईरान पर हमले को सही ठहराते हुए सख्त रुख अपनाया है, जबकि रूस और चीन ने इस कार्रवाई की निंदा की है और शांति की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र ने आपात बैठक बुलाई और सभी पक्षों से संयम की मांग की। मुस्लिम देश जैसे पाकिस्तान, तुर्की और कतर ने ईरान के समर्थन में बयान दिए, जबकि यूरोपीय देशों ने संतुलित रुख रखा है। भारत ने फिलहाल तटस्थ रहते हुए सिर्फ शांति और स्थिरता की अपील की है। इस युद्ध ने वैश्विक राजनीति को दो गुटों में बाँट दिया है और तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
युद्ध से होने वाले दुष्परिणाम
Israel–Iran युद्ध ने पूरे क्षेत्र में जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गए या घायल हुए, जबकि हजारों को घर छोड़कर भागना पड़ा। स्कूल, अस्पताल और बाजार बंद हैं, और चारों तरफ डर और दहशत का माहौल है। तेल के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है। इंटरनेट सेवाएं ठप हैं, और बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं बाधित हो गई हैं। यह युद्ध सिर्फ एक सैन्य संघर्ष नहीं, बल्कि मानवता पर सीधी चोट बन चुका है।
निष्कर्ष
Israel–Iran युद्ध ने साबित कर दिया है कि जब टकराव कूटनीति से आगे निकल जाता है, तो उसका खामियाजा आम इंसानों को भुगतना पड़ता है। यह संघर्ष केवल मिसाइलों और बमों का नहीं, बल्कि सोच, डर और वर्चस्व की लड़ाई बन चुका है। हर देश अपने हित में बोल रहा है, मगर मानवता कहीं खोती जा रही है। अगर हालात पर अब भी नियंत्रण नहीं हुआ, तो यह आग पूरे मध्य पूर्व को निगल सकती है। ज़रूरत है संवाद, संयम और समझदारी की — ताकि युद्ध नहीं, शांति की जीत हो।